जागृतावस्था में देखे, सुने एवं अनुभूत प्रसंगों की पुनरावृत्ति, सुषुप्तावस्था में मनुष्य को किसी न किसी रूप में एवं कभी-कभी बिना किसी तारतम्य के, शुभ और अशुभ स्वप्न के रूप में, दिग्दर्शित होती है, जिससे स्वप्न दृष्टा स्वप्न में ही आह्लादित, भयभीत और विस्मित होता है।
ज्ञानिक, या चिकित्सकीय दृष्टि से मानसिक उद्विग्नता, पाचन विकार, थकान, चिंता एवं आह्लाद के आधिक्य पर भी स्वप्न आधारित होते हैं। बहरहाल, शुभ स्वप्नों से शुभ कार्यों के अधिकाधिक प्रयास से कार्यसिद्धि में संलग्न होने का संकेत मिलता है और अशुभ स्वप्नों में आगामी संभावित दुखद स्थिति के प्रति सचेत रहने की नसीहत लेना विद्वानों द्वारा श्रेयष्कर बताया गया है। तदनुसार -
लक्षण स्वप्न शुभाशुभ, कह्यो, मत्स्य भगवान।
शुभ प्रयासरत, अशुभ से होंहि सचेत सुजान॥
श्री मत्स्य पुराण के २४२ वें अध्याय में बताया गया है कि सतयुग में जब भगवान अनंत जगदीश्वर ने मत्स्यावतार लिया था, तो मनु महाराज ने उनसे मनुष्य द्वारा देखे गये शुभाशुभ स्वप्न फल का वृत्तांत बताने का आग्रह किया था।
मनु महराज ने, अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु, मत्स्य भगवान से पूछा कि हे भगवान! यात्रा, या अनुष्ठान के पूर्व, या वैसे भी सामान्यतया जो अनेक प्रकार के स्वप्न मनुष्य को समय-समय पर दिखायी देते हैं, उनके शुभाशुभ फल क्या होते हैं, बताने की कृपा करें, यथा-
स्वप्नाख्यानं कथं देव गमने प्रत्युपस्थिते। दृश्यंते विविधाकाराः कशं तेषां फलं भवेत्॥
मत्स्य भगवान ने स्वप्नों के फलीभूत होने की अवधि के विषय में बताते हुये कहा :
कल्कस्नानं तिलैर्होमो ब्राह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथा तस्यैव पूजनम्॥६॥
नागेंद्रमोक्षश्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्। स्वप्नास्तु प्रथमे यामे संवस्तरविपाकिनः॥७॥
षड्भिर्भासैर्द्वितीये तु त्रिभिर्मासैस्तृतीयके। चतुर्थे मासमात्रेण पश्यतो नात्र संशयः॥८॥
अरुणोदयवेलायां दशाहेन फलं भवेत्। एकस्यां यदि वा रात्रौशुभंवा यदि वाशुभम्॥९।
पश्र्चाद् दृषृस्तु यस्तत्र तस्य पाकं विनिर्दिशेत्। तस्माच्छोभनके स्वप्ने पश्र्चात् स्वप्नोनशस्यते॥२०॥
अर्थात, रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल एक संवत्सर में अवश्य मिलता है। दूसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल ६ माह में प्राप्त होता है। तीसरे पहर में देखे गये स्वप्न का फल ३ माह में प्राप्त होता है। चौथे पहर में जो स्वप्न दिखायी देता है, उसका फल 1 माह में निश्चित ही प्राप्त होता है। अरुणोदय, अर्थात सूर्योदय की बेला में देखे गये स्वप्न का फल १० दिन में प्राप्त होता है। यदि एक ही रात में शुभ स्वप्न और दुःस्वप्न दोनों ही देखे जाएं, तो उनमें बाद वाला स्वप्न ही फलदायी माना जाना चाहिए, अर्थात् बाद वाले स्वप्न फल के आधार पर मार्गदर्शन करना चाहिए। क्योंकि बाद वाला स्वप्न फलीभूत होता है, अतः यदि रात्रि में शुभ स्वप्न दिखायी दे, तो उसके बाद सोना नहीं चाहिए।
शैलप्रासादनागाश्र्ववृषभारोहणं हितम्। द्रुमाणां श्वेतपुष्पाणां गमने च तथा द्विज॥२॥
द्रुमतृणारवो नाभौ तथैव बहुबाहुता। तथैव बहुशीर्षत्वं फलितोद्भव एवं च॥२२॥
सुशुक्लमाल्यधारित्वं सुशुक्लांबरधारिता। चंद्रार्कताराग्रहणं परिमार्जनमेव च॥२३॥
सक्रध्वजालिंग्नं च तदुच्छ्रायक्रिया तथा। भूंयंबुधीनां ग्रसनं शत्रुणां च वधक्रिया॥२४॥
अर्थात, शुभ स्वप्नों के फल बताते हुए श्री मत्स्य भगवान ने मनु महाराज को बताया कि पर्वत, राजप्रासाद, हाथी, घोड़ा, बैल आदि पर आरोहण हितकारी होता है तथा जिन वृक्षों के पुष्प श्वेत, या शुभ हों, उनपर चढ़ना शुभकारी है। नाभि में वृक्ष एवं घास-फूस उगना तथा अपने शरीर में बहुत सी भुजाएं देखना, या अनेक शिर, या मस्तक देखना, फलों को दान करते देखना, उद्भिजों के दर्शन, सुंदर, शुभ अर्थात् श्वेत माला धारण करना, श्वेत वस्त्र पहनना, चंद्रमा, सूर्य और ताराओं को हाथ से पकड़ना, या उनके परिमार्जन का स्वप्न दिखायी देना, इंद्र धनुष को हृदय से लगाना, या उसे ऊपर उठाने का स्वप्न दिखायी देना और पृथ्वी, या समुद्र को निगल लेना एवं शत्रुओं का वध करना, ऐसे स्वप्न देखना सर्वथा शुभ होता है। इसके अतिरिक्त भी जो स्वप्न शुभ होते हैं, वे निम्न हैं :
जयो विवादे द्यूते व संग्रामे च तथा द्विज। भक्षणं चार्द्रमांसानां मत्स्यानां पायसस्य च॥२५॥
दर्शनं रुधिरस्यापि स्नानं वा रुधिरेण च। सुरारुधिरमद्यानां पानं क्षीरस्य चाथ वा॥२६॥
अन्त्रैर्वा वेषृनं भूमौ निर्मलं गगनं तथा। मुखेन दोहनं शस्तं महिषीणां तथा गवाम्॥२७॥
सिंहीनां हस्तिनीनां च वडवानां तथैव च। प्रसादो देवविप्रेभ्यो गुरुभ्यश्र्च तथा शुभः॥२८॥
मत्स्य भगवान ने, मनु महाराज से उक्त तारतम्य में स्वप्नों के शुभ फलों की चर्चा करते हुए, बताया कि स्वप्न में संग्राम, वाद-विवाद में विजय, जुए के खेल में जीतना, कच्चा मांस खाना, मछली खाना, खून दिखाई देना, या रुधिर से नहाते हुए दिखाई देना, सुरापान, रक्तपान, अथवा दुग्धपान, अपनी आंतों से पृथ्वी को बांधते हुए देखना, निर्मल नभ देखना, भैंस, गाय, सिंहनी, हथिनी, या घोड़ी के थन में मुंह लगा कर दूध पीना, देवता, गुरु और ब्राह्मण को प्रसन्न देखना सभी शुभ फलदायी एवं शुभ सूचक होते हैं। मत्स्य भगवान ने और भी शुभ स्वप्नों की चर्चा करते हुए मनु महाराज को बताया :
अंभसा त्वभिषेकस्तु गवां श्रृग्सुतेन वा। चंद्राद् भ्रष्टेना वाराज४ाशेयोसज्यप्रदो हि सः॥२९॥
राज्याभिषेकश्र्च तथा छेदनं शिरसस्तथा। मरणं चह्निदाहश्र्च वह्निदाहो गृहादिषु॥३०।
लब्धिश्र्च राज्यलिग्नां तंत्रीवाद्याभिवादनम्। तथोदकानां तरणं तथा विषमलड़घनम्॥३१॥
हस्तिनीवडवानां च गवां च प्रसवों गृहे। आरोहणमथाश्र्वानां रोदनं च तथा शुभम्॥३२।
वरस्रीणां तथा लाभस्तथालिग्नमेव च। निगडैर्बंधनं धन्यं तथा विष्ठानुलेपनम्॥३२॥
जीवतां भूमिपालानां सुह्दामपि दर्शनम्। दर्शनं देवतानां च विमलानां तथांभसाम्॥३४॥
शुभांयथैतानि नरस्तु हष्ट्वा प्राप्नोत्ययत्वाद् ध्रुवमर्थलाभम्।
स्वप्नानि वै धर्मभृतां वरिष्ठ व्याधेर्विमोक्षं च तथातुरोऽपि॥३५॥
और भी अधिक शुभ स्वप्नों के फल मनु महाराज को बताते हुए श्री मत्स्य भगवान ने कहा कि राजन ! गौवों के सींग से स्रवित जल, या चंद्रमा से गिरते हुए जल से स्नान का स्वप्न सर्वथा शुभ एवं राज्य की प्राप्ति कराने वाला होता है। राज्यारोहण का स्वप्न, मस्तक कटने का स्वप्न, अपनी मृत्यु, प्रज्ज्वलित अग्नि देखना, घर में लगी आग का स्वप्न देखना, राज्य चिह्नों की प्राप्ति, वीणा वादन, या श्रवण, जल में तैरना, दुरूह स्थानों को पार करना, घर में हस्तिनी, घोड़ी तथा गौ का प्रसव देखना, घोड़े की सवारी करते देखना, स्वयं को रोते देखना आदि स्वप्न शुभ और मंगल शकुन के द्योतक होते हैं। इसके अतिरिक्त सुंदरियों की प्राप्ति तथा उनका आलिंगन, जंजीर में स्वयं को बंधा देखना, शरीर में मल का लेप देखना, जो राजा मौजूद हैं, उन्हें स्वप्न में देखना, मित्रों को स्वप्न में देखना, देवताओं का दर्शन, निर्मल जल देखने के स्वप्न भी सर्वथा शुभकारी होते हैं, जिससे बिना प्रयास के धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा रुग्ण व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। अशुभ स्वप्नों एवं उनके फलों के विषय में श्री मत्स्य भगवान मनु महाराज को बताते हुए कहते हैं :
इदानीं कथयिष्यामि निमित्तं स्वप्नदर्शने। नाभिं विनान्यगात्रेषु तृणवृक्षसमुरवः॥२।
चूर्णनं मूध्निं कांस्यानां मुण्डनं नग्नता तथा। मलिनांबरधारित्त्वमभ्यग्ः पटदिग्धता॥३॥
उच्चात् प्रपतनं चैव दोलारोहणमेव च। अर्जनं पटलोहानां हयानामपि मारणम्॥४॥
रक्तपुष्पद्रुमाणां च मंडलस्य तथैव च। वराहर्क्षखरोष्ट्राणां तथा चारोहणक्रिया॥५॥
भक्षणं पक्षिमत्स्यानां तैलस्य कृसरस्य च। नर्तनं हसनं चैव विवाहो गीतमेव च॥६॥
तंत्रीवाद्यविहीनानां वाद्यानामभिवादनम्। स्रोतोऽवगाहगमनं स्नानं गोमयवारिणा॥७॥
पटोदकेन च तथा महीतोयेन चाप्यथ। मातुः प्रवेशा जठरे चितारोहणमेव च॥८॥
शक्रध्वजाभिपतनं पतनं शशिसूर्ययोः। दिव्यांतरिक्षभौमानामुत्पातानां च दर्शनम्॥९॥
अर्थात, मत्स्य भगवान ने विभिन्न स्वप्नों के अशुभ फलों की ओर इंगित करते हुए मनु महाराज से कहा कि हे राजन! स्वप्न में नाभि के अतिरिक्त, शरीर के अन्य अंगों में घास, फूस, पेड़-पौधे उगे हुए देखना, सिर पर कांसे को कुटता देखना, मुंडन देखना, अपने को नग्न देखना, स्वयं को मैले कपड़े पहने हुए देखना, तेल लगाना, कीचड़ में धंसना, या कीचड़ लिपटा देखना, ऊंचे स्थान से गिरना, झूला झूलना, कीचड़ और लोहा आदि एकत्रित करना, घोड़ों को मारना, लाल फूलों के पेड़ पर चढ़ना, या लाल पुष्पों के पेड़ों का मंडल, सूअर, भालू, गधे और ऊंटों की सवारी करना, पक्षियों का भोजन करना, मछली, तेल और खिचड़ी खाना, नृत्य करना, हंसना, विवाह एवं गाना-बजाना देखना, बीणा के अलावा अन्य वाद्यों को बजाना, जल स्रोत में नहाने जाना, गोबर लगा कर जल स्नान, कीचड़युक्त उथले जल में नहाना, माता के उदर में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इंद्र पताका का गिरना, चंद्रमा एवं सूर्य को गिरते देखना, अंतरिक्ष में उल्का पिंडों के उत्पात आदि स्वप्न में देखना सर्वथा अशुभ है।
देवद्विजातिभूपालगुरूणं क्रोध एवं च। आलिग्नं कुमारीणां पुरुषाणां च मैथुनम्॥१०॥
हानिश्चैव स्वगात्राणां विरेकवमनक्रिया। दक्षिणाशाभिगमनंव्याधिनाभिभवस्तथा॥११॥
फलापहानिश्र्च तथा पुष्पहानिस्तथैव च। गृहाणां चैव पातश्च गृहसम्मार्जनं तथा॥२॥
क्रीड़ा पिशाचक्रव्याद्वानरर्क्षनररैपि। परादभिभवश्चैव तस्मांच व्यसनारवः॥३॥
काषायवस्रधारित्वं तद्वत् स्त्रीक्रीडनं तथा। स्नेहपानवगाहौ च रक्तमाल्यानुलेपनम्॥४॥
एवमादीनि चान्यानि दुःस्वप्नानि विनिर्दिशेत्। एषा। संकथनं धन्यं भूयः प्रस्वापनं तथा॥५॥
अर्थात, श्री मत्स्य भगवान्, स्वप्नों के अशुभ फलों के विषय में मनु महाराज को बताते हुए पुनः कहते हैं कि देवता! राजा और गुरुजनों को क्रोध करते देखना, स्वप्न में कुमारी कन्याओं का आलिंगन करना, पुरुषों का मैथुन करना, अपने शरीर का नाश, कै-दस्त करते स्वयं को देखना, स्वप्न में दक्षिण दिशा की यात्रा करना, अपने को किसी व्याधि से ग्रस्त देखना, फलों और पुष्पों को नष्ट होते देखना, घरों को गिरते देखना, घरों में लिपाई, पुताई, सफाई होते देखना, पिशाच, मांसाहारी पशुओं, बानर, भालू एवं मनुष्यों के साथ क्रीड़ा करना, शत्रु से पराजित होना, या शत्रु की ओर से प्रस्तुत किसी विपत्ति से ग्रस्त होना, स्वयं को मलिन वस्त्र स्वयं पहने देखना, या वैसे ही वस्त्र पहने स्त्री के साथ क्रीड़ा करना, तेल पीना, या तेल से स्नान करना, लाल पुष्प, या लाल चंदन धारण करने का स्वप्न देखना आदि सब दुःस्वप्न हैं। ऐसे दुःस्वप्नों को देखने के बाद तुरंत सो जाने से, या अन्य लोगों को ऐसे दुःस्वप्न बता देने से उनका दुष्प्रभाव कम हो जाता है।
दुःस्वप्नों के दुष्प्रभाव के शमन का उपाय बताते हुये मत्स्य भगवान मनु महाराज से कहते है :
कलकस्नानं तिलैर्होमो ब्रह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथातस्यैव पूजनम्॥
नागेंद्रमोक्ष श्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्॥
अर्थात, ऐसे दुःस्वप्न देखने पर कल्क स्नान करना चाहिए, तिल की समिधा से हवन कर के ब्राह्मणों का पूजन, सत्कार करना चाहिए। भगवान वासुदेव की स्तुति (पूजन द्वादश अक्षरमंत्र ÷ त्त् नमो भगवते वासुदेवाय' का जप) करनी चाहिए और गजेंद्र मोक्ष कथा का पाठ, या श्रवण करना चाहिए। इनसे दुःस्वप्नों के दुष्प्रभाव का शमन होता है।
ज्ञानिक, या चिकित्सकीय दृष्टि से मानसिक उद्विग्नता, पाचन विकार, थकान, चिंता एवं आह्लाद के आधिक्य पर भी स्वप्न आधारित होते हैं। बहरहाल, शुभ स्वप्नों से शुभ कार्यों के अधिकाधिक प्रयास से कार्यसिद्धि में संलग्न होने का संकेत मिलता है और अशुभ स्वप्नों में आगामी संभावित दुखद स्थिति के प्रति सचेत रहने की नसीहत लेना विद्वानों द्वारा श्रेयष्कर बताया गया है। तदनुसार -
लक्षण स्वप्न शुभाशुभ, कह्यो, मत्स्य भगवान।
शुभ प्रयासरत, अशुभ से होंहि सचेत सुजान॥
श्री मत्स्य पुराण के २४२ वें अध्याय में बताया गया है कि सतयुग में जब भगवान अनंत जगदीश्वर ने मत्स्यावतार लिया था, तो मनु महाराज ने उनसे मनुष्य द्वारा देखे गये शुभाशुभ स्वप्न फल का वृत्तांत बताने का आग्रह किया था।
मनु महराज ने, अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु, मत्स्य भगवान से पूछा कि हे भगवान! यात्रा, या अनुष्ठान के पूर्व, या वैसे भी सामान्यतया जो अनेक प्रकार के स्वप्न मनुष्य को समय-समय पर दिखायी देते हैं, उनके शुभाशुभ फल क्या होते हैं, बताने की कृपा करें, यथा-
स्वप्नाख्यानं कथं देव गमने प्रत्युपस्थिते। दृश्यंते विविधाकाराः कशं तेषां फलं भवेत्॥
मत्स्य भगवान ने स्वप्नों के फलीभूत होने की अवधि के विषय में बताते हुये कहा :
कल्कस्नानं तिलैर्होमो ब्राह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथा तस्यैव पूजनम्॥६॥
नागेंद्रमोक्षश्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्। स्वप्नास्तु प्रथमे यामे संवस्तरविपाकिनः॥७॥
षड्भिर्भासैर्द्वितीये तु त्रिभिर्मासैस्तृतीयके। चतुर्थे मासमात्रेण पश्यतो नात्र संशयः॥८॥
अरुणोदयवेलायां दशाहेन फलं भवेत्। एकस्यां यदि वा रात्रौशुभंवा यदि वाशुभम्॥९।
पश्र्चाद् दृषृस्तु यस्तत्र तस्य पाकं विनिर्दिशेत्। तस्माच्छोभनके स्वप्ने पश्र्चात् स्वप्नोनशस्यते॥२०॥
अर्थात, रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल एक संवत्सर में अवश्य मिलता है। दूसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल ६ माह में प्राप्त होता है। तीसरे पहर में देखे गये स्वप्न का फल ३ माह में प्राप्त होता है। चौथे पहर में जो स्वप्न दिखायी देता है, उसका फल 1 माह में निश्चित ही प्राप्त होता है। अरुणोदय, अर्थात सूर्योदय की बेला में देखे गये स्वप्न का फल १० दिन में प्राप्त होता है। यदि एक ही रात में शुभ स्वप्न और दुःस्वप्न दोनों ही देखे जाएं, तो उनमें बाद वाला स्वप्न ही फलदायी माना जाना चाहिए, अर्थात् बाद वाले स्वप्न फल के आधार पर मार्गदर्शन करना चाहिए। क्योंकि बाद वाला स्वप्न फलीभूत होता है, अतः यदि रात्रि में शुभ स्वप्न दिखायी दे, तो उसके बाद सोना नहीं चाहिए।
शैलप्रासादनागाश्र्ववृषभारोहणं हितम्। द्रुमाणां श्वेतपुष्पाणां गमने च तथा द्विज॥२॥
द्रुमतृणारवो नाभौ तथैव बहुबाहुता। तथैव बहुशीर्षत्वं फलितोद्भव एवं च॥२२॥
सुशुक्लमाल्यधारित्वं सुशुक्लांबरधारिता। चंद्रार्कताराग्रहणं परिमार्जनमेव च॥२३॥
सक्रध्वजालिंग्नं च तदुच्छ्रायक्रिया तथा। भूंयंबुधीनां ग्रसनं शत्रुणां च वधक्रिया॥२४॥
अर्थात, शुभ स्वप्नों के फल बताते हुए श्री मत्स्य भगवान ने मनु महाराज को बताया कि पर्वत, राजप्रासाद, हाथी, घोड़ा, बैल आदि पर आरोहण हितकारी होता है तथा जिन वृक्षों के पुष्प श्वेत, या शुभ हों, उनपर चढ़ना शुभकारी है। नाभि में वृक्ष एवं घास-फूस उगना तथा अपने शरीर में बहुत सी भुजाएं देखना, या अनेक शिर, या मस्तक देखना, फलों को दान करते देखना, उद्भिजों के दर्शन, सुंदर, शुभ अर्थात् श्वेत माला धारण करना, श्वेत वस्त्र पहनना, चंद्रमा, सूर्य और ताराओं को हाथ से पकड़ना, या उनके परिमार्जन का स्वप्न दिखायी देना, इंद्र धनुष को हृदय से लगाना, या उसे ऊपर उठाने का स्वप्न दिखायी देना और पृथ्वी, या समुद्र को निगल लेना एवं शत्रुओं का वध करना, ऐसे स्वप्न देखना सर्वथा शुभ होता है। इसके अतिरिक्त भी जो स्वप्न शुभ होते हैं, वे निम्न हैं :
जयो विवादे द्यूते व संग्रामे च तथा द्विज। भक्षणं चार्द्रमांसानां मत्स्यानां पायसस्य च॥२५॥
दर्शनं रुधिरस्यापि स्नानं वा रुधिरेण च। सुरारुधिरमद्यानां पानं क्षीरस्य चाथ वा॥२६॥
अन्त्रैर्वा वेषृनं भूमौ निर्मलं गगनं तथा। मुखेन दोहनं शस्तं महिषीणां तथा गवाम्॥२७॥
सिंहीनां हस्तिनीनां च वडवानां तथैव च। प्रसादो देवविप्रेभ्यो गुरुभ्यश्र्च तथा शुभः॥२८॥
मत्स्य भगवान ने, मनु महाराज से उक्त तारतम्य में स्वप्नों के शुभ फलों की चर्चा करते हुए, बताया कि स्वप्न में संग्राम, वाद-विवाद में विजय, जुए के खेल में जीतना, कच्चा मांस खाना, मछली खाना, खून दिखाई देना, या रुधिर से नहाते हुए दिखाई देना, सुरापान, रक्तपान, अथवा दुग्धपान, अपनी आंतों से पृथ्वी को बांधते हुए देखना, निर्मल नभ देखना, भैंस, गाय, सिंहनी, हथिनी, या घोड़ी के थन में मुंह लगा कर दूध पीना, देवता, गुरु और ब्राह्मण को प्रसन्न देखना सभी शुभ फलदायी एवं शुभ सूचक होते हैं। मत्स्य भगवान ने और भी शुभ स्वप्नों की चर्चा करते हुए मनु महाराज को बताया :
अंभसा त्वभिषेकस्तु गवां श्रृग्सुतेन वा। चंद्राद् भ्रष्टेना वाराज४ाशेयोसज्यप्रदो हि सः॥२९॥
राज्याभिषेकश्र्च तथा छेदनं शिरसस्तथा। मरणं चह्निदाहश्र्च वह्निदाहो गृहादिषु॥३०।
लब्धिश्र्च राज्यलिग्नां तंत्रीवाद्याभिवादनम्। तथोदकानां तरणं तथा विषमलड़घनम्॥३१॥
हस्तिनीवडवानां च गवां च प्रसवों गृहे। आरोहणमथाश्र्वानां रोदनं च तथा शुभम्॥३२।
वरस्रीणां तथा लाभस्तथालिग्नमेव च। निगडैर्बंधनं धन्यं तथा विष्ठानुलेपनम्॥३२॥
जीवतां भूमिपालानां सुह्दामपि दर्शनम्। दर्शनं देवतानां च विमलानां तथांभसाम्॥३४॥
शुभांयथैतानि नरस्तु हष्ट्वा प्राप्नोत्ययत्वाद् ध्रुवमर्थलाभम्।
स्वप्नानि वै धर्मभृतां वरिष्ठ व्याधेर्विमोक्षं च तथातुरोऽपि॥३५॥
और भी अधिक शुभ स्वप्नों के फल मनु महाराज को बताते हुए श्री मत्स्य भगवान ने कहा कि राजन ! गौवों के सींग से स्रवित जल, या चंद्रमा से गिरते हुए जल से स्नान का स्वप्न सर्वथा शुभ एवं राज्य की प्राप्ति कराने वाला होता है। राज्यारोहण का स्वप्न, मस्तक कटने का स्वप्न, अपनी मृत्यु, प्रज्ज्वलित अग्नि देखना, घर में लगी आग का स्वप्न देखना, राज्य चिह्नों की प्राप्ति, वीणा वादन, या श्रवण, जल में तैरना, दुरूह स्थानों को पार करना, घर में हस्तिनी, घोड़ी तथा गौ का प्रसव देखना, घोड़े की सवारी करते देखना, स्वयं को रोते देखना आदि स्वप्न शुभ और मंगल शकुन के द्योतक होते हैं। इसके अतिरिक्त सुंदरियों की प्राप्ति तथा उनका आलिंगन, जंजीर में स्वयं को बंधा देखना, शरीर में मल का लेप देखना, जो राजा मौजूद हैं, उन्हें स्वप्न में देखना, मित्रों को स्वप्न में देखना, देवताओं का दर्शन, निर्मल जल देखने के स्वप्न भी सर्वथा शुभकारी होते हैं, जिससे बिना प्रयास के धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा रुग्ण व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। अशुभ स्वप्नों एवं उनके फलों के विषय में श्री मत्स्य भगवान मनु महाराज को बताते हुए कहते हैं :
इदानीं कथयिष्यामि निमित्तं स्वप्नदर्शने। नाभिं विनान्यगात्रेषु तृणवृक्षसमुरवः॥२।
चूर्णनं मूध्निं कांस्यानां मुण्डनं नग्नता तथा। मलिनांबरधारित्त्वमभ्यग्ः पटदिग्धता॥३॥
उच्चात् प्रपतनं चैव दोलारोहणमेव च। अर्जनं पटलोहानां हयानामपि मारणम्॥४॥
रक्तपुष्पद्रुमाणां च मंडलस्य तथैव च। वराहर्क्षखरोष्ट्राणां तथा चारोहणक्रिया॥५॥
भक्षणं पक्षिमत्स्यानां तैलस्य कृसरस्य च। नर्तनं हसनं चैव विवाहो गीतमेव च॥६॥
तंत्रीवाद्यविहीनानां वाद्यानामभिवादनम्। स्रोतोऽवगाहगमनं स्नानं गोमयवारिणा॥७॥
पटोदकेन च तथा महीतोयेन चाप्यथ। मातुः प्रवेशा जठरे चितारोहणमेव च॥८॥
शक्रध्वजाभिपतनं पतनं शशिसूर्ययोः। दिव्यांतरिक्षभौमानामुत्पातानां च दर्शनम्॥९॥
अर्थात, मत्स्य भगवान ने विभिन्न स्वप्नों के अशुभ फलों की ओर इंगित करते हुए मनु महाराज से कहा कि हे राजन! स्वप्न में नाभि के अतिरिक्त, शरीर के अन्य अंगों में घास, फूस, पेड़-पौधे उगे हुए देखना, सिर पर कांसे को कुटता देखना, मुंडन देखना, अपने को नग्न देखना, स्वयं को मैले कपड़े पहने हुए देखना, तेल लगाना, कीचड़ में धंसना, या कीचड़ लिपटा देखना, ऊंचे स्थान से गिरना, झूला झूलना, कीचड़ और लोहा आदि एकत्रित करना, घोड़ों को मारना, लाल फूलों के पेड़ पर चढ़ना, या लाल पुष्पों के पेड़ों का मंडल, सूअर, भालू, गधे और ऊंटों की सवारी करना, पक्षियों का भोजन करना, मछली, तेल और खिचड़ी खाना, नृत्य करना, हंसना, विवाह एवं गाना-बजाना देखना, बीणा के अलावा अन्य वाद्यों को बजाना, जल स्रोत में नहाने जाना, गोबर लगा कर जल स्नान, कीचड़युक्त उथले जल में नहाना, माता के उदर में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इंद्र पताका का गिरना, चंद्रमा एवं सूर्य को गिरते देखना, अंतरिक्ष में उल्का पिंडों के उत्पात आदि स्वप्न में देखना सर्वथा अशुभ है।
देवद्विजातिभूपालगुरूणं क्रोध एवं च। आलिग्नं कुमारीणां पुरुषाणां च मैथुनम्॥१०॥
हानिश्चैव स्वगात्राणां विरेकवमनक्रिया। दक्षिणाशाभिगमनंव्याधिनाभिभवस्तथा॥११॥
फलापहानिश्र्च तथा पुष्पहानिस्तथैव च। गृहाणां चैव पातश्च गृहसम्मार्जनं तथा॥२॥
क्रीड़ा पिशाचक्रव्याद्वानरर्क्षनररैपि। परादभिभवश्चैव तस्मांच व्यसनारवः॥३॥
काषायवस्रधारित्वं तद्वत् स्त्रीक्रीडनं तथा। स्नेहपानवगाहौ च रक्तमाल्यानुलेपनम्॥४॥
एवमादीनि चान्यानि दुःस्वप्नानि विनिर्दिशेत्। एषा। संकथनं धन्यं भूयः प्रस्वापनं तथा॥५॥
अर्थात, श्री मत्स्य भगवान्, स्वप्नों के अशुभ फलों के विषय में मनु महाराज को बताते हुए पुनः कहते हैं कि देवता! राजा और गुरुजनों को क्रोध करते देखना, स्वप्न में कुमारी कन्याओं का आलिंगन करना, पुरुषों का मैथुन करना, अपने शरीर का नाश, कै-दस्त करते स्वयं को देखना, स्वप्न में दक्षिण दिशा की यात्रा करना, अपने को किसी व्याधि से ग्रस्त देखना, फलों और पुष्पों को नष्ट होते देखना, घरों को गिरते देखना, घरों में लिपाई, पुताई, सफाई होते देखना, पिशाच, मांसाहारी पशुओं, बानर, भालू एवं मनुष्यों के साथ क्रीड़ा करना, शत्रु से पराजित होना, या शत्रु की ओर से प्रस्तुत किसी विपत्ति से ग्रस्त होना, स्वयं को मलिन वस्त्र स्वयं पहने देखना, या वैसे ही वस्त्र पहने स्त्री के साथ क्रीड़ा करना, तेल पीना, या तेल से स्नान करना, लाल पुष्प, या लाल चंदन धारण करने का स्वप्न देखना आदि सब दुःस्वप्न हैं। ऐसे दुःस्वप्नों को देखने के बाद तुरंत सो जाने से, या अन्य लोगों को ऐसे दुःस्वप्न बता देने से उनका दुष्प्रभाव कम हो जाता है।
दुःस्वप्नों के दुष्प्रभाव के शमन का उपाय बताते हुये मत्स्य भगवान मनु महाराज से कहते है :
कलकस्नानं तिलैर्होमो ब्रह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथातस्यैव पूजनम्॥
नागेंद्रमोक्ष श्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्॥
अर्थात, ऐसे दुःस्वप्न देखने पर कल्क स्नान करना चाहिए, तिल की समिधा से हवन कर के ब्राह्मणों का पूजन, सत्कार करना चाहिए। भगवान वासुदेव की स्तुति (पूजन द्वादश अक्षरमंत्र ÷ त्त् नमो भगवते वासुदेवाय' का जप) करनी चाहिए और गजेंद्र मोक्ष कथा का पाठ, या श्रवण करना चाहिए। इनसे दुःस्वप्नों के दुष्प्रभाव का शमन होता है।
khet khalihan me aag bahut dur dur tak laga huaa but use jalkar bujha huaa dekhane Ka kya MATLAB huaa swami jee Hume hamare id mail per bhej de mai aapka sada aabhari rahunga. ransarashok.2012@gmail.com
ReplyDeleteashokb.2012@rediffmail.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAgar sapne mein koi galaa daba raha hai to
ReplyDeleteIska arth kya hoga
iska matlab vahi hai jo aapne likha hai
DeleteSapne mai bache ka ko janam dene ka kya arth h guru ji
ReplyDeleteSapne mai bache ka ko janam dene ka kya arth h guru ji
ReplyDeleteIska matlab hai ki din bhar usi ke bare me sochti ho
Deletesapne mein durga maa ka prasad grhan karna ka kya matlab hai.
ReplyDeletesapne mein durga maa ka prasad grhan karna ka kya matlab hai.
ReplyDeleteSapne Mein mara hua father dekhna
ReplyDeleteSapne Mein mara hua father dekhna
ReplyDelete